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© सर्वाधिकार सुरक्षित कमल, आशीष। आशीष कमल के इजाजत के बिना पुन: प्रकाशित नहीं की जा सकती।


Wednesday, May 27, 2015

मेरे शिव

मेरे शिव;
भक्तों ने आपकी गाथाओं का जो गुनगाण किया,
भोलेनाथ, महादेव, नारायण है नाम दिया I
दयालु, निराकार, हैं ओंकार आप,
केदारनाथ, स्वयंभू और पालनहार आप, 
विघ्नहर्ता, सुखकर्ता, बैजू विश्वनाथ आप,
रूप आपके इतने सारे, जैसे ब्रह्माण्ड में है सितारे I
मेरे शिव;
भक्तों ने आपकी गाथाओं का जो गुनगाण किया,
नीलकंठ, रामेश्वर, और नारायण आपने अपना नाम दिया I
आपकी कृपा से मिट्टी में जल, और धरा पर् उपवन,
सुर्य चन्द्रमा बादल गगन, झील नहर और पवन,
जिसे देख प्राणी होते मगन और उन्हें मिलते हैं जीवनI
मेरे शिव;
भक्तों ने आपकी गाथाओं का जो गुनगाण किया,
भोलेनाथ, महादेव रामेश्वरम, और नारायण आपने, अपना नाम दियाI
मुझे भक्ती का आप वरदान दो,
दया अब करो शिव और मुझे ज्ञान दो,
हो मनोरथ पूर्ण अर्धनारीश्वर मेरी,
मेरे ह्रदय में हो सिर्फ सूरत तेरीI
मेरे शिव;
आपके आशीष ने यही प्रार्थना और नमन है किया,
भोलेनाथमहादेव रामेश्वरमऔर नारायण आपने, अपना नाम दियाI




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मिलने का भी, अजीब दास्तां है दोस्तों ...

कुछ लोग मिल कर तड़पते हैं, 
तो कुछ लोग तड़प कर मिलते हैं I

कोई जिन्द्गी से मिल कर तड़पता है, 
तो कोई तड़प कर अपनी जिंदगी से मिलता है I

मिलने का भी, अजीब दास्तां है दोस्तों ...

कोइ ख्वाबों में मिलता है, 
तो कोइ मिल कर ख्वाब बन जाता है I

किसी से दिल नहीं मिलता, 
तो कोइ दिल से नहीं मिलता I 

मिलने का भी, अजीब दास्तां है दोस्तों ...

कोइ मिलने की दुआ करता है, 
तो कोइ न मिलने की दुआ करता है I

कोइ अपनों से मिलता है, 
तो कोइ मिल कर अपना हो जाता है I

मिलने का भी, अजीब दास्तां है दोस्तों ...

कोइ अपनों से मिल कर खुश हो जाता है, 
तो कोइ गैरों से मिल खुश होता है I

किसी से मिलने की खुशी होती है, 
तो किसी से मिल कर दुर होने की खुशी होती है I

मिलने का भी, अजीब दास्तां है दोस्तों ...

कोइ हमसे नहीं मिलता, 
तो किसी से हम नहीं मिलते I

मिलने का भी, अजीब दास्तां है दोस्तों ...


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Asheesh Kamal



Monday, May 25, 2015

अब तो तुम्हारी मोहब्ब्त से मै डरता हुँ...

तुम्हारी बेरूखी मंजूर मुझे,
                     अब तुम्हारी मोहब्ब्त से मैं डरता हुँ I
तुम जैसी भी हो, जानम हो तुम मेरी,
                             मैं तो तुमही से प्यार करता हुँI
क्युँ मैने उसे अपना बनाया,
                                और क्यों उसे अधिकार दियाI
उस बेवफा पर एतबार,
                और  क्युँ इतना उससे, मैने प्यारा कियाI
कल तक वो जान देने की कहती थी,
                 अब इरादा है उसका मेरी जान लेने कीI
कितना बेबस हुँ मैं अपने इस दिल से,
              उस बेवफा से आज भी मैं वफा करता हुँI
तुम्हारी सूरत पसंद मुझे,
                   अब तुम्हारे साथ रहने से मैं डरता हुँI
तुम्हारी बेरूखी मंजूर मुझे,
                      अब तुम्हारी मोहब्ब्त से मैं डरता हुँI
तुम जैसी भी हो, जीवन हो तुम मेरी,
                              मैं तो तुमही से जिन्दा रहता हुँI
क्या कहुँ मौकापरस्त, खुदगर्ज या बेदर्दी,
                               ऐसी अपेक्षा मुझे, तुमसे ना थीI
मेरी अस्तित्व कर दिया तुमने खतम,
                        मेरी ख्वाहिश तो जानता है शिवमI
मुझको मेरी अधूरी मोहब्बत की कसम,
                                दिन रात मैं युँहि तड़पता हुँI
तुम्हारी नफरत मंजूर मुझे,
                 अब तो तुम्हारी मोहब्ब्त से मैं डरता हुँI
तुम जैसी भी हो, धड़कन हो तुम मेरी,

                             मैं तो तुमही से जिन्दा रहता हुँI

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Asheesh Kamal

Monday, May 18, 2015

मै रो पड़ता हुँ जब मेरा, अकेले साँस चलता है...

ना जाने क्यूँ तेरा पास आकर दुर होना; बड़ा दिल दुखाता है I
मै तड़प उठता हुं, तुम्हारी तस्वीर देखकर,
जाने क्यूँ मेरे कधे पर तेरा सर रखना; जब याद आता है,
मेरे ह्र्दय में दिया जब तुम्हारा, धड़कन धड़कता है,
मै रो पड़ता हुँ जब मेरा, अकेले साँस चलता है I
ना जाने क्यूँ तेरा पास आकर दुर होना; बड़ा दिल दुखाता है I
जो तुमने लगाया था, अपने लबों से मेरे होठों को,
जब मै अपने चेहरे को देखता आईने में,
ना जाने क्यूँ तुम्हारा ही चेहरा, मुझे नजर आता है,
मै तड़प उठता हुँ, अपने गालों को देखकर,
वो प्यार से तेरा जब गाल सहलाना, मुझे याद आता है I
ना जाने क्यूँ तेरा पास आकर दुर होना; बड़ा दिल दुखाता है I
जो गुजारे थे लम्हें, हमने चाँद के गोद में,
जो खायी थी कसमें हमने, एकदूसरे के आगोस में,
ना  जाने क्यूँ चाँद में तुम्हारा ही, अक्स नजर आता है,
मै रो पड़ता हुँ जब, पूर्णिमा बाद अमावस्या आता है I

ना जाने क्यूँ तेरा पास आकर दुर होना; बड़ा दिल दुखाता है I
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Asheesh Kamal

Sunday, May 17, 2015

मोहब्बत की सच्चाई

नासूर सा बन गया है मोहब्बत आजकल, जिसे देखो वो दिल लगा लेते हैं और बहुत दुर तक साथ चलते हैं एवं कुछ दिनों के बाद उस प्यार भरे दिल को दो मिनट में ही टुकड़े कर देते हैं. इस संदर्भ में, एक बेपनाह प्यार करने वाले परम की कहानी आज आपको सुनाता हुँ-
परम एक ऐसा लड़का जो भावुकता का प्रतिबिम्बथा, ह्र्दय में मानवता की अनुभूति, ईश्वर से अगाध प्रेम, निश्च्छल मन और सुकोमल चेहरा का धनी व्यक्ति था वो, उसके नजर में मोहब्बत ईश्वर की ईबादत थी, कुछ दिन पहले वो हमसे मिला था तो मैने उससे यूँहि पूछा ‘परम क्या आपने कभी प्यार किया है? जब परम मेरे इस प्रश्न को सुना तो उसकी आखों में अश्रुधारा की बुंदे निकलने लगी फिर अपने आप को संभालते हुये परम ने अपने पर्स से एक पासपोर्ट साइज का फोटो निकाला और मुझे दिखाते हुये बोलने लगा- हाँ; किसी से हमने भी प्यार किया था, खूब किया था और इतना किया था जितना कोई नहीं करता, मैने अपने ह्र्दय में ईश्वर के जगह उसकी तस्वीर लगा दी थी, लेकिन उस पगली ने मुझे भी औरों की तरह समझ लिया था, मेरे साथ रिश्ते उसने टूट कर निभाये थे समाज के सामने तो हम अलग अलग थे किंतु हमदोनों ईश्वर के सामने हमसफर बनकर साथ जिने मरने की कसमें खाये थे, बस उसके माथे पर मेरे नाम के सिंदुर नहीं लगेगी थे लेकिन वो कड़वा चौथ का व्रत करती थी मेरी लम्बी जिंदगी के लिये, उसने बहुत सारे सपने दिखाये मुझे, उसने मेरे दिल के सारे मोहब्बत चुरा लिये, उसने मुझे अपना दिवाना बना लिया था, और हमने कई रात चाँद के आगोस मेंसाथ गुजारे थे, उसने मेरे माथे को चुम कर कहा था ये मेरे प्यारे परम आप तो मेरे प्यारा सा बाबू हो आप तो सात जनमों तक सिर्फ मेरे हो और हमेशा मेरे ही रहोगे, मेरे साँसो के मध्य विराजमान हो गयी थी वो, दिन रात उसके ख्यालों में सपने बुना करता था मैं और वो भी मेरे साथ ख्वाब सजाती थी, हमदोनों बहुत खुश थे, वो मुझेबहुत प्यार करती, मेरे साथ जिंदगी बिताने की कितने कसमें खायी थी उसने, मंदिर और मजार पर मत्थे टेके थे उसने मुझे अपना प्रियतम बनाने के लिए, अपने पापा से भी मिलाया था उसने और हमने उन्हे पिता समझ कर इज्जत दिया, क्योंकि कावेरी के पिता तो मेरे भी पिता, पिछले पाँच साल से वो मेरे साथ रही मेरी दुल्हन बन कर, वादे के मुताबिक अब हमने शादी का फैसला किया, लेकिन जब भी मैं बोलता शादी के लिये तो वो हँस कर टाल देती, और कहती ऐ मेरे प्रियतम मेरे परम, आप तनिक भी न सोचो शादी तो मेरी आपसे ही होगी, फिर मैं चुप रह जाता...
कुछ दिन बाद अचानक से उसने बोला मेरे बाबू मेरे जान मुझे माफ कर दो आज से मै किसी और की हो गयी और अब मेरी शादी ठीक हो गयी, कृपया आप मुझे भूल जाओ


मुझे तो साँप सुघ गया, अरे कावेरी ये तुम क्या बोल रही हो, कैसे मै तुम्हे भूल जाउँ, मैने तुम्हारे साथ जिंदगी जीने का फैसला कर लिया है और तुम ककहती हो भूल जाउँ, अरे कावेरी हमदोनों की तो शादी हो गयी है सिर्फ सिदूर ही तो नही लगाया मैने तुम्हारे माथे पर, पाँच साल तुम मेरी दुल्हन बन मेरे खुशी और गम में साथ रही और आज मुझे छोड़ कर किसी और के साथ शादी करने जा रही हो, ऐसा क्युँ कावेरी, मैं तुम्हारे बिना नही जी पाउँगा, तुम्हारी इतनी सारी यादें हैं मेरे पास, तुम्हारी इन यादों को कैसे भूलूँगा, प्लीज मेरा साथ नही छोड़ो, प्लीज कावेरी. उसने हँसते हुये कहा वो पाँच साल मैने यूँहि बिताया मैने सोचा मेरे पिता हमारी शादी की बात मान जायेगे इसलिये मै तुम्हारी दुल्हन बन तुम्हारे साथ रही लेकिन अब पिता नहीं समझ रहे है तो मै क्या करूँ, मैं पिताजी का विरोध नहीं कर सकती,मैं मजबूर हुँआप कृपया मुझे माफ कर दिजिये अब मै किसी और की बनने जा रही हुँ, कावेरी तुमने जो कसमें खायी थी, वादे किये थे उसका क्या? क्या वो सब झुठ थे, जब तुम्हारा खुद का निर्णय नही था तो तुमने मुझे ख्वाब क्यों दिखाये, क्यों मेरे साथ इतना गहरा रिश्ता बनायी, अरे पागल तुम्हे तो कुछ नही हो रहा है लेकिन मेरी स्थिति नियंत्रण में नही है, मैं अपने ह्रदय को हाथों से दबाते हुये पुन: बोला प्लीज मुझे अकेला नहीं छोड़ो. किंतु कावेरी ने कहा मैं मजबूर हुँ परम और  फोन कट कर दिया... मै नि:शब्द, धम्म से फर्श पर गिर गया.. आखो से अश्रुधारा निकलने लगी, मै यहाँ बँद कमरे में पिछ्ले पाँच साल की घटनाओं को याद कर तड़पता रहा और उधर कावेरी भविष्य की खुशियो को सोच कर शादी मनाती रही...झूठी मोहब्बत के सामने आज फिर सच्चा मोह्ब्बत हार गया , अपितु मैं उसके यादों को दिल में लिये शादी नहीं करने का फैसला लिया, क्या पता जो दूसरी आये वो भी ऐसी ही हो? एक साँस में परम ने अपनी आपबिति सुना दिया, उसकी आखों से अश्रु निकलते देख कर मै भी भव विभोर हो गया, परम की कहानी सुनते सुनते कब शाम हो गयी पता नही चला, फिर मैने परम को उसके घर छोड़ कर वापस अपने घर की ओर द्रवित मन से जाने लगा मन में अजीब सी बेचैनी हो गयी थी, घर पहुँचा तो कावेरी ने मेरा पसंद का खाना बनाया था, लेकिन मैने पराठा का दो निवाला मुँह में डाला और अपने कमरे की तरफ बढने लगा मेरी पत्नी कावेरी ने मुझसे पूछा भी , क्या जी खाना अच्छ नही है क्या , मैने अच्छ है बोलकर कमरे में चला गया, मैने फैसला किया की कल परम से मिलकर उसे समझाउँगा, सुबह जल्दी से उठकर परम के घर पहुँचा वहाँ की स्थिति देख कर थोड़ा शुकून मिला किंतु जब अन्दर गया तो शरीर मेरा सुन्न हो गया परम इस दुनिया से विदा हो चुका था उसकी मोहब्ब्त उसके लिये अभिशाप बन गयी, निश्चित ही जब कोई मनुष्य प्रेम की चरम तक पहुँच जाता है तो उसे ये दुनियावाले समझ नही पाते और अंतत: ईश्वर के शरण में उसके प्रेम का दीक्षांत हो जाता है. मै भिगी पलकों से वापस लौट आया, और खुद ही प्रश्न करता और खुद ही उत्तर देता, शादी के पहले प्यार नहीं करें, अगर प्यार करना ही है तो शादी के बाद करें, अन्यथा परम के जैसा आपका भी यही हाल होगा, क्योकि आजकल लड़के-लड़कीयाँ मोहब्बत तो कर लेते है फिर प्यार में बहुत आगे तक चले जाते है कितु जब शादी की बात आती है तो अपने पैरेट्स की दुहाई देने लगते है, मै कहता हुँ जब शादी का डीसिजन तुम्हारा नही है तो प्यार करने का डीसिजन भी तुम्हार नहीं होना चाहिये किसी को ख्वाब दिखाने की जरूरत ही क्या है, प्यार भी अपने माता पिता से पूछ कर ही किया करो, आपने तो शादी कर लिया और खुशी खुशी अपनी जिंदगी जिने लगे, कभी उसके बारे में सोचा की उसका क्या होगा जिसे आपने पाँच साल से ख्वाब दिखाये, उसकी हर धड़कन पर आपने अपना नाम लिख दिया और एक पल मे तोड़ दिये उसके सारे ख्वाब, तो उसपर क्या बीत रही होगी, यदि यही कार्य परम करता तो कावेरी पुलिस में जाती और  क्या- क्या करती, ये मुझे भी नही पता, लेकिन वो परम को नम्रतापूर्वक नहीं छोड़ती, परम से बदला कावेरी जरूर लेती. लेकिन परम तो भावुक और संस्कारी लड़का था उसने कावेरी के साथ कुछ नही किया तथा अपने दिल को हमेशा के लिए आँसूओ मे कैद कर दिया और आज उसके मोहब्ब्त का दीक्षांत हो गया, शायद उपर उसे कुछ शांति मिले।

दोस्तो आजकल यही है मोहब्ब्त की सच्चाई तो PleaseHandle with Care” –
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मोहब्बत की सच्चाई

नासूर सा बन गया है मोहब्बत आजकल, जिसे देखो वो दिल लगा लेते हैं और बहुत दुर तक साथ चलते हैं एवं कुछ दिनों के बाद उस प्यार भरे दिल को दो मिनट में ही टुकड़े कर देते हैं. इस संदर्भ में, एक बेपनाह प्यार करने वाले परम की कहानी आज आपको सुनाता हुँ-
परम एक ऐसा लड़का जो भावुकता का प्रतिबिम्बथा, ह्र्दय में मानवता की अनुभूति, ईश्वर से अगाध प्रेम, निश्च्छल मन और सुकोमल चेहरा का धनी व्यक्ति था वो, उसके नजर में मोहब्बत ईश्वर की ईबादत थी, कुछ दिन पहले वो हमसे मिला था तो मैने उससे यूँहि पूछा ‘परम क्या आपने कभी प्यार किया है? जब परम मेरे इस प्रश्न को सुना तो उसकी आखों में अश्रुधारा की बुंदे निकलने लगी फिर अपने आप को संभालते हुये परम ने अपने पर्स से एक पासपोर्ट साइज का फोटो निकाला और मुझे दिखाते हुये बोलने लगा- हाँ; किसी से हमने भी प्यार किया था, खूब किया था और इतना किया था जितना कोई नहीं करता, मैने अपने ह्र्दय में ईश्वर के जगह उसकी तस्वीर लगा दी थी, लेकिन उस पगली ने मुझे भी औरों की तरह समझ लिया था, मेरे साथ रिश्ते उसने टूट कर निभाये थे समाज के सामने तो हम अलग अलग थे किंतु हमदोनों ईश्वर के सामने हमसफर बनकर साथ जिने मरने की कसमें खाये थे, बस उसके माथे पर मेरे नाम के सिंदुर नहीं लगेगी थे लेकिन वो कड़वा चौथ का व्रत करती थी मेरी लम्बी जिंदगी के लिये, उसने बहुत सारे सपने दिखाये मुझे, उसने मेरे दिल के सारे मोहब्बत चुरा लिये, उसने मुझे अपना दिवाना बना लिया था, और हमने कई रात चाँद के आगोस मेंसाथ गुजारे थे, उसने मेरे माथे को चुम कर कहा था ये मेरे प्यारे परम आप तो मेरे प्यारा सा बाबू हो आप तो सात जनमों तक सिर्फ मेरे हो और हमेशा मेरे ही रहोगे, मेरे साँसो के मध्य विराजमान हो गयी थी वो, दिन रात उसके ख्यालों में सपने बुना करता था मैं और वो भी मेरे साथ ख्वाब सजाती थी, हमदोनों बहुत खुश थे, वो मुझेबहुत प्यार करती, मेरे साथ जिंदगी बिताने की कितने कसमें खायी थी उसने, मंदिर और मजार पर मत्थे टेके थे उसने मुझे अपना प्रियतम बनाने के लिए, अपने पापा से भी मिलाया था उसने और हमने उन्हे पिता समझ कर इज्जत दिया, क्योंकि कावेरी के पिता तो मेरे भी पिता, पिछले पाँच साल से वो मेरे साथ रही मेरी दुल्हन बन कर, वादे के मुताबिक अब हमने शादी का फैसला किया, लेकिन जब भी मैं बोलता शादी के लिये तो वो हँस कर टाल देती, और कहती ऐ मेरे प्रियतम मेरे परम, आप तनिक भी न सोचो शादी तो मेरी आपसे ही होगी, फिर मैं चुप रह जाता...
कुछ दिन बाद अचानक से उसने बोला मेरे बाबू मेरे जान मुझे माफ कर दो आज से मै किसी और की हो गयी और अब मेरी शादी ठीक हो गयी, कृपया आप मुझे भूल जाओ


मुझे तो साँप सुघ गया, अरे कावेरी ये तुम क्या बोल रही हो, कैसे मै तुम्हे भूल जाउँ, मैने तुम्हारे साथ जिंदगी जीने का फैसला कर लिया है और तुम ककहती हो भूल जाउँ, अरे कावेरी हमदोनों की तो शादी हो गयी है सिर्फ सिदूर ही तो नही लगाया मैने तुम्हारे माथे पर, पाँच साल तुम मेरी दुल्हन बन मेरे खुशी और गम में साथ रही और आज मुझे छोड़ कर किसी और के साथ शादी करने जा रही हो, ऐसा क्युँ कावेरी, मैं तुम्हारे बिना नही जी पाउँगा, तुम्हारी इतनी सारी यादें हैं मेरे पास, तुम्हारी इन यादों को कैसे भूलूँगा, प्लीज मेरा साथ नही छोड़ो, प्लीज कावेरी. उसने हँसते हुये कहा वो पाँच साल मैने यूँहि बिताया मैने सोचा मेरे पिता हमारी शादी की बात मान जायेगे इसलिये मै तुम्हारी दुल्हन बन तुम्हारे साथ रही लेकिन अब पिता नहीं समझ रहे है तो मै क्या करूँ, मैं पिताजी का विरोध नहीं कर सकती,मैं मजबूर हुँआप कृपया मुझे माफ कर दिजिये अब मै किसी और की बनने जा रही हुँ, कावेरी तुमने जो कसमें खायी थी, वादे किये थे उसका क्या? क्या वो सब झुठ थे, जब तुम्हारा खुद का निर्णय नही था तो तुमने मुझे ख्वाब क्यों दिखाये, क्यों मेरे साथ इतना गहरा रिश्ता बनायी, अरे पागल तुम्हे तो कुछ नही हो रहा है लेकिन मेरी स्थिति नियंत्रण में नही है, मैं अपने ह्रदय को हाथों से दबाते हुये पुन: बोला प्लीज मुझे अकेला नहीं छोड़ो. किंतु कावेरी ने कहा मैं मजबूर हुँ परम और  फोन कट कर दिया... मै नि:शब्द, धम्म से फर्श पर गिर गया.. आखो से अश्रुधारा निकलने लगी, मै यहाँ बँद कमरे में पिछ्ले पाँच साल की घटनाओं को याद कर तड़पता रहा और उधर कावेरी भविष्य की खुशियो को सोच कर शादी मनाती रही...झूठी मोहब्बत के सामने आज फिर सच्चा मोह्ब्बत हार गया , अपितु मैं उसके यादों को दिल में लिये शादी नहीं करने का फैसला लिया, क्या पता जो दूसरी आये वो भी ऐसी ही हो? एक साँस में परम ने अपनी आपबिति सुना दिया, उसकी आखों से अश्रु निकलते देख कर मै भी भव विभोर हो गया, परम की कहानी सुनते सुनते कब शाम हो गयी पता नही चला, फिर मैने परम को उसके घर छोड़ कर वापस अपने घर की ओर द्रवित मन से जाने लगा मन में अजीब सी बेचैनी हो गयी थी, घर पहुँचा तो प्रज्ञा ने मेरा पसंद का खाना बनाया था, लेकिन मैने पराठा का दो निवाला मुँह में डाला और अपने कमरे की तरफ बढने लगा मेरी पत्नी प्रज्ञा ने मुझसे पूछा भी , क्या जी खाना अच्छा नहींं है क्या , मैने अच्छा है बोलकर कमरे में चला गया, मैने फैसला किया की कल परम से मिलकर उसे समझाउँगा। सुबह जल्दी से उठकर परम के घर पहुँचा वहाँ की स्थिति देख कर थोड़ा शुकून मिला किंतु जब अन्दर गया तो शरीर मेरा सुन्न हो गया परम इस दुनिया से विदा हो चुका था उसकी मोहब्ब्त उसके लिये अभिशाप बन गयी, निश्चित ही जब कोई मनुष्य प्रेम की चरम तक पहुँच जाता है तो उसे ये दुनियावाले समझ नही पाते और अंतत: ईश्वर के शरण में उसके प्रेम का दीक्षांत हो जाता है. मै भिगी पलकों से वापस लौट आया, और खुद ही प्रश्न करता और खुद ही उत्तर देता, शादी के पहले प्यार नहीं करें, अगर प्यार करना ही है तो शादी के बाद करें, अन्यथा परम के जैसा आपका भी यही हाल होगा, क्योकि आजकल लड़के-लड़कीयाँ मोहब्बत तो कर लेते है फिर प्यार में बहुत आगे तक चले जाते है कितु जब शादी की बात आती है तो अपने पैरेट्स की दुहाई देने लगते है, मै कहता हुँ जब शादी का डीसिजन तुम्हारा नही है तो प्यार करने का डीसिजन भी तुम्हार नहीं होना चाहिये किसी को ख्वाब दिखाने की जरूरत ही क्या है, प्यार भी अपने माता पिता से पूछ कर ही किया करो, आपने तो शादी कर लिया और खुशी खुशी अपनी जिंदगी जिने लगे, कभी उसके बारे में सोचा की उसका क्या होगा जिसे आपने पाँच साल से ख्वाब दिखाये, उसकी हर धड़कन पर आपने अपना नाम लिख दिया और एक पल मे तोड़ दिये उसके सारे ख्वाब, तो उसपर क्या बीत रही होगी, यदि यही कार्य परम करता तो कावेरी पुलिस में जाती और  क्या- क्या करती, ये मुझे भी नही पता, लेकिन वो परम को नम्रतापूर्वक नहीं छोड़ती, परम से बदला कावेरी जरूर लेती. लेकिन परम तो भावुक और संस्कारी लड़का था उसने कावेरी के साथ कुछ नही किया तथा अपने दिल को हमेशा के लिए आँसूओ मे कैद कर दिया और आज उसके मोहब्ब्त का दीक्षांत हो गया, चला गया हमेशा के लिए इस दर्द भरी दुनिया को छोड़कर।

दोस्तो आजकल यही है मोहब्ब्त की सच्चाई तो PleaseHandle with Care” –
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अधूरी कहानी

जब परीक्षा का अंतिम परिणाम आया तो आज भी मेरा नाम नहीं था, पता नहीं मेरी किस्मत में क्या लिखा है, कब मेरी जॉब होगी यह कहते हुये रूँआसा हो गया था मैं, आप तनिक भी घबराओ नहीं, जब कुछ अच्छा होने को रहता है तो ईश्वर हमारे हाथ को खाली कर देते हैं जिससे हम अपनी खुशीयों को दोनों हाथों से समेट सकें, रूद्राणी मेरी आँसूओं को पोछ्ते हुये बोलीl मैं रूद्राणी के सामने नि:शब्द हो गयाl अगले दिन मैं कोलकाता के वही पुराने ऑफिस पहुँचा और अपने केबीन मे चला गया,मैं अपने भविष्य को ले कर पूरे दिन परेशान रहा,शाम मे ट्रेन द्वारा ऑफिस से घर लौट रहा थाl ट्रेन में अचानक किसी ने आवाज दी परम जी, मैने मुड़कर देखा तो मैं पहचान नही पाया, और पुछ ही दिया जी आप कौन? उन्होने बोला; आपने मुझे नही पहचाना? मैने कहा नहीं? तो उसने शूरू की; जी मैं कावेरी बनर्जी हुं और मैं आपके ऑफिस मे आज ही ज्वाइन की हुँ, आप तो अपने ऑफिस के स्टाफ को ही नही पहचानते और मुझे देखीये; मैने झट से आपको पहचान लियाl हुँ न मै स्मार्ट, बोलिये ? हाँ बोलिये? बोलिये?  मैने युँहि अपन सर हाँ मे हिला दिया, और फिर शूरू हो गयी हमारी दोस्ती, दोस्ती कब प्यार मे बदला गयी मुझे पता नहीं चला, मुझे याद है जब मैं मुम्बई गया था परीक्षा देने और उसमे भी मेरा चयन नही हुआ तथा मै रूआसा होकर कावेरी को फोन किया था तो मुझे रूँआसा देख कर उसने मुझे तब तक ‘मै आपसे प्यार करती हुँ’ बोलती रही जब तक मैने हँस नही दिया, मेरे सोये हुये प्रेम को कावेरी ने कुरेद कुरेद कर बाहर निकाल दिया, सत्य है जब इसान जिद्गी के तलाश मे रहता है तो उसे एक सहारे की आवश्यकता होती है और जब सहारा लक्ष्य बन जाये तो जिदगी और भी खुबसूरत लगने लगती है. करीब दो साल बाद मुझे आई आई टी त्रिवेन्द्रम मे जॉब मिल गयी इन दो वर्षों मे कावेरी ने एक सच्चा हमसफर होने का परिचय दिया था, मेरी हर वस्तु से उसने प्यार किया, और मुझे भी उसकी हर अदा से सच्चा प्रेम हो गया था, मै तो उसके बिना साँस भी नही ले पाता था, वो हमेशा मुझे फोन पर बोलती रहती  खाना खाये, घड़ी बाँधे की नहीं, अच्छा सा शर्ट पहन कर ऑफिस जायेंगे न, समय पर खाना खा रहे हैं नl परम आपको पता है कुछ दिन बाद जब मैं आपके पास दुल्हन बन कर आ जाउगी तो न मै आपको बहुत तग करुँगी अब तो आपको मुझे जिंदगी भर झेलना होगा, मै तो भूत हुँ परम साहब; एक बार आपको पकड़ ली तो अब जिंदगी भर नही छोड़ुगीl कावेरी के मुहब्बत और अपनापन देख कर मेरी तो हालात यह हो गयी थी की कावेरी के बिना मैं जीवन जीने का कल्पना भी नही कर पा रहा था, और ये लाजिमि भी था क्युँकि कावेरी भी मेरे से सच्चा प्यार करती थी और वो भी मेरे बिना जीवन नही जी सकती थी, इसलिए अब हमदोनों ने फैसला किया की हम शादी कर लें फिर मै उसके पिता से मिला उन्होने साफ शब्दों मे मना कर  दिया ‘ बेटा आप तमिलनाडु से हो और हमलोग बंगाल से है, हम दोनों की संस्कृति भिन्न है” कावेरी के पिता की बातें सुन मै तो सकते मे आ गया, मै कुछ बोलता तब तक उन्होने दरवाजा बन्द कर दिया था , मै उनसे पुछना चाहता था ‘जब ईश्वर ने रक्त में कोई अंतर नही किया, रूह में अंतर नही किया, तो हमारी सोच मे अतर कैसे हो गयी,  पता नही? मैने कावेरी मे अपनी माँ का अक्स देखा था , मेरी माँ तो तमिल थी और कावेरी बगाली फिर मुझे उसमे माँ का अक्स क्यूँ दिखाई दिया, ना जाने कब हमारे बुजुर्गो की मानसिकता बदलेगी, ना जाने उन्हे कब समझ आयेगा कि शादी दो दिलों का मिलन होता है न की दो शरीर का , और जिस शादी मे दिलो का मिलन होता है वो जाति या समुदाये नही देखा करती उसे तो बस दिल को सभालने वाला चाहिये, जिस तरह एक कलम जज के हाथो से लिखती है पर्ंतु उस कलम को ये नही मालुम की उसने क्या लिखा, ठीक ऐसे ही ये दिल प्यार कर लेता है और मालुम नही की सामने वाला दिल किस जाति और किस प्रदेश का है, खैर, मै अपने आप को सँभालते हुये कावेरी को फोन किया, पर्ंतु कावेरी का उत्तर सुन कर मै तो हतप्रभ रह गया, मेरा दिल और दिमाग सुन्न हो गया, मेरी आखो से अविरल अश्रुधारा फुट पड़ी, मेरी दुनिया समाप्त हो चुकी थी, मेरे ख्वाब टूट चुके थे, समझ में नहीं आ रहा था मैं क्या करूँ, मैं किसी तरह अपने कमरे में पहुँचा, और ईश्वर अयप्पा स्वामी के सामने खड़ा हुआ इधर  आँखो से लगातार आँसू गिरते जा रहे थे, मेरी आँसूओं को पोछकर हँसी देने वाली अब वापस नहीं आने वाली थी, मैने लम्बी साँस लेते हुये कहा, काश मेरी  जिन्दगी मे एक रीसायकल बिन होता, तो पुन: रीस्टोर कर लेता मैं उन लम्हों को और पूरा कर देता मेरी और कावेरी की अधूरी कहानी कोl 
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मेरा जीवन तुमही पर निसार है...

मेरी धड़कनों को तुम अपने सिने में लगा लो,
मेरी साँसो में तुम अपनी साँसो को बसा लो I
मेरी जिंदगी तुम्हारी अमानत है,
मेरी खुशी को तुम अपनी खुशीयाँ बना लो I
करूँगा सजदा मैं तुम्हारी मुहब्बत का,
मेरे चेहरे पर खुशी का अब तिलक तुम लगा दो I
मेरी धड़कनों को तुम अपने सिने में लगा लो,
मेरी साँसो में तुम अपनी साँसो को बसा लो I
तुम्हारे सिने में प्यार अपरंपार है,
और तुम्हारी आँखो में स्नेह भी अपार है I
मचलती रहे हँसी तुम्हारी गुलाबी लबों पर,
और मेरे सिने में, धड़कता तुम्हारा ही प्यार है I
ऐ जान , वजूद नहीं मेरा, तुम्हारे बिना,
मेरी रूह पर भी अब तेरा ही एख्तियार है I
मेरी धड़कनों को तुम अपने सिने में लगा लो,
मेरी साँसो में तुम अपनी साँसो को बसा लो I
तुम ही मेरी जिंदगी हो और तुम ही मेरी दुल्हन,
तुमसे हुँ मैं जिन्दा और तुम ही मेरी धड़कन I
ऐ मेरी खुशी;
तुम्हारे होठ, और तुम्हारे नयन,
तुम्हारे दिल की हर धड़कन,
तुम्हारी जिंदगी, तुम्हारी सादगी,
तुम्हारी खुशी और तुम्हारी हँसी,
मेरी जिंदगी इन सब पर निसार है I
मेरी धड़कनों को तुम अपने सिने में लगा लो,
मेरी साँसो में तुम अपनी साँसो को बसा लो I
तुम मेरी रूह हो तुम हो मेरी शुकून,
तुम मेरी मेरी साँस हि और तुम ही जुनून,
तुम मेरी जज्बात हो तुम हो मेरी अल्फाज,
तुम से हुँ जिन्दा और तुम ही मेरी हमराज,
ऐ हमसफर,
अब तुम्हें बना कर रखुँगा अपने साँसो का सरताज I
मेरी धड़कनों को तुम अपने सिने में लगा लो,
मेरी साँसो में तुम अपनी साँसो को बसा लो I
तुम्हारे चेहरे का नूर मेरे दिल क शूरूर है,
तुम्हारे माथे का सिन्दुर मेरे नाम का गुरूर है I
मै तुम्हारे बाँहो में सिमटा रहुँ तुम्हारे सिने से लग कर,
तुम्हारे लबों को चुमता रहुँ तुम्हारे ही हसबैंड बन कर I
मेरी धड़कनों को तुम अपने सिने में लगा लो,
मेरी साँसो में तुम अपनी साँसो को बसा लो I
तुम मेरी खुशी बन मुस्कुराती रहो,
तुम मेरी सजनी बन मेरी जिंदगी को सजाती रहो,
क्योंकि;
अब मेरी जिंदगी पर ऐ जान,
 तुम्हारा ही अधिकार है,
और मेरा जीवन भी तुमही पर निसार है I
मेरी धड़कनों को तुम अपने सिने में लगा लो,
मेरी साँसो में तुम अपनी साँसो को बसा लो I

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Asheesh Kamal

Friday, May 15, 2015

सिखा दिया तुमने मुझे...

सिखा दिया तुमने मुझे,
अब अपनों पर भी शक करना ,
मैं तो ऐसा था,
जो गैरों पर भी भरोसा करता था ....
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एक दिन मैं आउंगा...

मैं तुम्हें अपने पलकों पर बिठाउंगा,
तुम्हारे आँचल से ममता मैं चुराउंगा,
तुम्हारे कदम पड़ेंगे जहाँ-जहाँ,
वहाँ मैं फुलों की गुलिस्तां भी लगाउंगा,
तुम्हारे काँपते हाथों को अपने माथे पर लगाउंगा,
एक दिन मैं आउंगा, वादा है माँ, मैं आउंगा II

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अब कहाँ उसके लफ्जों में वो अपनापन ?

अब नहीं मिलते उसके किताबों में वो अल्फाज,
जिसे पढ़ के आँखों से आँसू निकलते थे,
जिसमें यादों की मिठी खुशबु होती थी,
मन की कलियाँ खिल उठती थी, उसके लफ्जों को पढ के II
अब तो उसके लफ्जों में,
बेबसी और लाचारी दिखती है,
अपनों को बाँटने की बेकरारी दिखती है II
कहाँ खो गयी उसके लबों की वो बातें,
जिसपे रहता था हम सभी एक हैं और एक ही रहेंगे,
उसके लफ्जों में अक्सर मैंने सुना था,
एक माँ के हम सभी, जिश्म अलग-अलग पर जान है एक II 
अब कहाँ उसके लफ्जों में वो अपनापन,
उसके लफ्जों में तो गैरों की खुशबु घुल सी गयी है II
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Thursday, May 14, 2015

अपनों की पहचान


ना जाने समय कैसी ईम्तहान लेती है
अपनों से दुर कर अपनों की पहचान लेती है
मैं यहाँ गैरों की भीड़ में अपनों की तलाश करता हुँ
दुर तक जाती है नजरें और लौट आती
कहता है दिल और कहता है मन
गैरों में भी कोई अपना मिला है क्या
अपनों की आँसू कोई अपना ही समझता है
लगा के सीने से कोई अपना ही तड़पता है
भर देता है खुशीयाँ और स्नेह अपार
जब फँसती है नैया बीच मझधार
तो कोई अपना ही लगाता है नया को पार
©आशीष कमल



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मेरी किस्मत ??

ऐ दोस्तों,
कुछ मेरी किस्मत पर हँसते हैं,
तो कुछ मेरी किस्मत का मजाक उड़ाते हैं,
तो कुछ ऐसे भी हैं, जो मेरी किस्मत पर तरस खाते हैंI

अब उनसे कैसे बताउँ मैं,
मेरी किस्मत उन लोगों जैसी है जो मर कर “अमर” हो जाते हैं II

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ना जाने क्यूँ तेरा मिल कर जुदा होना बहुत दर्द देता है

ना जाने क्यूँ तेरा मिल कर जुदा होना बहुत दर्द देता है,
मैं तुम्हारे होठों की हँसी से अपना घर सजाता हुँ,
तुम्हारे आँचल की ममता में अपना आँसू छुपाता हुँ l
ना जाने क्यूँ तेरा मिल कर जुदा होना बहुत दर्द देता है...
तुम्हारे पैरों को चुम कर मैं अपना सौभाग्य सजाता हुँ,
जब तुम रहती हो मेरे पास,
तो तेरे होने की खुशी में अपना गम भूल जात हुँ l
ना जाने क्यूँ तेरा मिल कर जुदा होना बहुत दर्द देता है...
ऐ माँ; तू मेरे साथ रह, मेरी रूह बनके,
तेरे होने से मैं खुद को बाग्यवान समझता हुँl
ना जाने क्यूँ तेरा मिल कर जुदा होना बहुत दर्द देता है...

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