जब आज, जिदगी से हुयी मुलाकात, (1)
मन को
मिला जैसे, खुशीयों की सौगात,
उनकी नजरों से नजरें, जब टकरा गये,
दिल के अरमाँ, होठों पर आ गये II
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मस्तिष्क, मन को संभाल न सका
थी मुहब्बत जो दिल में हमारी....
बढती धड़कनों को दिल भी, संभाल न सका II
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होठों ने सुना दिये उनको, मुहब्बत की तपिश
थी बेकरारी जो ह्रदय में हमारी, वर्षों से
दबी
उनके आँखो में आखे डाल....2 जता न सका II
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हमने अपनी मोहब्बत का राजे इजहार कर दिया
लेकिन उन्हें अपने मोहब्बत के, आगोश मे कर न सका
सपने मेरे टूट कर, बिखर गये,
मैं अपनी पलकों के आँसू को, उनको दिखा न सका II
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शायद उनको मेरी मोहब्बत पर, यकिन न
हुआ
फिर भी;
उनकी आखों मे आखें डाल, दिल की बात हमने
सुना दिया
पर;
चंद मिनटों में ही उन्होने,
वर्षों की मेरी मोहब्ब्त को ठुकरा दिया II
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वो कहते हैं…
(2)
“मोहब्बत पर यकिन नहीं मुझे,
न दिल पिघलता है मेरा,
किसी के प्यार में,
गर करना ही है तुम्हें मोहब्बत,
तो जाओ? जाकर ढुँढो मेरे अलावा,
इस भरी संसार में”
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हम भी कहाँ कम थे, हमने भी कह दिया…
मिलता नहीं प्यार सच्चा इस संसार में,
ये वस्तु नहीं जो मिल जाये बाजार में,
गर, एक से दिल न मिले,
तो कट जाती है जिंदगी,
उस बेपनाह
मोहब्बत के ही इतजार में II
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मैंने बहुत प्यार से अपने भींगे पलकों को
पोछते हुये
पुन: कहा…
तुमने ठुकरा दिया मेरी मोहब्बत को,
कोई बात नही,
लेकिन याद रखना,
तुम जाना उसके ही पास,
जो हो मेरे से भी बड़ा, इस संसार में II